BREAKING NEWS:-उधार की जिंदगी जीने को मज़बूर हैं जनपद पंचायत मनासा पड़े ये खबर !

BREAKING NEWS:-उधार की जिंदगी जीने को मज़बूर हैं जनपद पंचायत मनासा पड़े ये खबर !

लोकप्रिय विधायक की छवि को धूमिल और सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाने में जुटी हैं भ्रष्ट बाबुओं सहित छुटभैय्या जनप्रतिनिधियों और सरपंचों की जुगलबंदी..?

मनासा/नीमच:- विगत कई महीनों से जनपद पंचायत मनासा एक अनाथ और उधार की जिंदगी जीने को मज़बूर हैं, जहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी के अभाव और बिना अंकुश के कोई भी कर्मचारी, बाबू और अधिकारी मन माफ़िक या यूं कहे कि किसी भी छुटभैया जनप्रतिनिधि के इशारे या प्रभाव में कुछ भी अवैधानिक कार्य करने में नहीं हिचकिचा रहें कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। कहने को तो फ़िलहाल जनपद पंचायत मनासा का प्रभार अनुविभागीय अधिकारी महोदय मनासा के हाथ में हैं किंतु प्रभारी महोदय के पास वहीं मामले अथवा फाइल्स पहुंचती हैं जो भ्रष्ट बाबू चाहे या फिर जिनके लिए छुटभैय्याओ का इशारा हो? वैसे भी अनुविभागीय अधिकारी महोदय के जिम्मे संपूर्ण उपखंड के महत्वपूर्ण कार्य हैं तब ऐसी स्थिति में एक बड़े पंचायत विभाग के कितने मामले उनके संज्ञान में आएंगे? कहां किस पंचायत में तलाइ के नाम अवैध राशि निकाली जा रही हैं या कहां बारिश का पानी बहने वाले नाले में तलाई बनाई जा रहीं? कहां वॉटर प्रकोलेशन केवल फाइल में बना हैं या फिर कहां वॉटर शेड के नाम राशि निकाली गई? कहां सीसी सड़क बनीं हैं या कहां बिल्डिंग निर्माण हुआ या नहीं? कहां कौन इंजीनियर कैसे स्टीमेट पर साइन कर रहा हैं या फ़िर सचिव कौनसी टी एस बना रहा? या फ़िर लोकप्रिय विधायक महोदय के नाम का प्रभाव लेकर छुटभैय्याओ और सरपंचों के द्वारा अवैध बनवाया जा रहा हैं? आमजनता न्याय के लिए अपनी समस्या लेकर जाएं तो कहां जाएं?

इन सबमें आम नागरिक का एक संवैधानिक अधिकार हैं सूचना का अधिकार अधिनियम। जिसकी धज्जियां तो ऐसे उड़ाई जा रही है जैसे मकर संक्रांति पर पतंगें। कोई भी आमजन किसी पंचायत से जानकारी चाहने के लिए सूचना का अधिकार में आवेदन प्रस्तुत कर रहा हैं तब अव्वल तो पंचायत द्वारा उसे तवज्जों नहीं दी जा रहीं क्योंकि कई ग्राम पंचायतो के सचिवों को यह भी पता नहीं कि "मैं एक लोक सूचना अधिकारी भी हूं" ।वहीं अगर कोई अपील के लिए अपीलीय अधिकारी की शरण में जा रहा हैं तो मुख्य कार्यपालन अपीलीय अधिकारी के अभाव में उन आवेदनों को डिब्बों में डाला जा रहा हैं, क्योंकि प्रभारी महोदय तक तो वहीं फाइल्स जायेगी जो भ्रष्ट कर्मचारी, बाबू, अधिकारी, अथवा छुटभैय्यां या सरपंच चाहेंगे? यहां तक कि कई बार तो जनपद पंचायत के लोक सूचना अधिकारी भी मूल आवेदन का जवाब देना उचित नहीं समझते।

वहीं अगर अंदर के सूत्रों की मानें तो इन सब कार्यों में लोकप्रिय माननीय विधायक महोदय के नाम के प्रभाव का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा हैं। 

यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि, गलती छुटभैया जनप्रतिनिधियों और सरपंचों की नहीं हैं क्योंकि उन्हें तो संवैधानिक सूचना के अधिकार की महत्त्वता अथवा अधिनियमों का संज्ञान नहीं हैं लेकिन,

प्रशासनिक बाबुओं, कर्मचारियों और अधिकारियों तो सूचना के अधिकार की महत्वता, गरिमा और नियमों से भलीभांति परिचित हैं ना? फिर वो जानबूझकर अधिनियम का उल्लंघन करने में क्यों लगें हैं यह एक विचारणीय प्रश्न हैं।

या फिर यूं कहे कि जनपद पंचायत मनासा के प्रशासनिक कर्मचारियों, बाबुओं,अधिकारियों, ग्राम पंचायतों के सचिवों को सूचना के अधिकार अधिनियम परीक्षण की आवश्यकता हैं?

और नया पुराने